उत्तराखण्ड

हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालय में भारतीय भाषा परिवार की अवधारणा पर राष्ट्रीय संगोष्ठी संपन्न 

सी एम पपनैं

श्रीनगर (गढ़वाल)। भारतीय भाषा समिति, नई दिल्ली एवं हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालय के हिंदी एवं आधुनिक भारतीय भाषा विभाग के संयुक्त तत्वावधान में ‘भारतीय भाषा परिवार’ की अवधारणा पर दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन 19 व 20 दिसम्बर 2025 को शैक्षणिक क्रियाकलाप केंद्र, चौरास परिसर हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालय में मुख्य अतिथि प्रख्यात भाषाविद प्रो. रमेश चंद्र शर्मा, गढ़वाल विश्वविद्यालय कुलपति प्रो. श्रीप्रकाश सिंह एवं देश के विभिन्न विश्व विद्यालयों से आमंत्रित वक्ताओं प्रो. मृदुल जोशी, प्रो. राजीव अग्रवाल, प्रोफेसर सुधीर प्रताप सिंह, डॉ. सुशील कोटनाला, प्रो. रचना विमल, प्रो. अमित कुमार जायसवाल, प्रो. अरविन्द कुमार अवस्थी इत्यादि इत्यादि की प्रभावी उपस्थिति में आयोजित किया गया।

आयोजित दो दिवसीय संगोष्ठी का श्रीगणेश 19 दिसंबर को मुख्य अतिथि, विश्व विद्यालय कुलपति तथा देश के विभिन्न विश्व विद्यालयों के आमंत्रित वक्ता अतिथियों द्वारा दीप प्रज्वलित कर तथा हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विश्व विद्यालय हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो. गुड्डी बिष्ट पंवार द्वारा सभी अतिथियों का स्वागत अभिनन्दन कर व आयोजित कार्यक्रम की रूपरेखा प्रस्तुत कर किया गया। राष्ट्रीय संगोष्ठी के इस अवसर पर भारतीय भाषा परिवार पर केन्द्रित दो पुस्तकों “भारतीय भाषा परिवार: भाषा विज्ञान में एक नई रूपरेखा” तथा भारतीय भाषा परिवार पर संकलित “अध्ययन: परिप्रेक्ष्य एवं क्षितिज” का लोकार्पण किया गया।

मुख्य अतिथि प्रख्यात भाषाविद प्रो. रमेश चंद्र शर्मा द्वारा संगोष्ठी के इस अवसर पर व्यक्त किया गया, हमें भारतीय भाषाओं को समझने के लिए पाश्चात्य विद्वानों द्वारा स्थापित भारोपीय परिवार की संकल्पना को छोड़ कर भारतीय भाषा परिवार की नई अवधारणा के आधार पर भाषा का अध्ययन करना चाहिए। आयोजित कार्यक्रम संरक्षक एवं गढ़वाल विश्वविद्यालय कुलपति प्रो. श्रीप्रकाश सिंह द्वारा भारतीय भाषा परिवार की संकल्पना को भाषा विज्ञान के क्षेत्र में एक सराहनीय कदम तथा भारत की भाषाओं के लोकगीतों में विविधता होते हुए भी एक भावनात्मक एकता दिखाई देने की बात कही गई। विश्व विद्यालय कुलपति द्वारा उपस्थित शोधार्थियों से आह्वान किया गया, वे भाषा विज्ञान की इस नवीन अवधारणा को अपने शोध का आधार बनाएं।

आयोजित संगोष्ठी के द्वितीय सत्र में मुख्य वक्ता प्रो. मृदुल जोशी द्वारा भारतीय भाषा परिवार की नई रूपरेखा पर आधारित लोकार्पित पुस्तकों को भाषाई अध्ययन के लिए अति महत्वपूर्ण बताया गया। दिल्ली विश्वविद्यालय गणित विभाग आचार्य प्रो. राजीव अग्रवाल द्वारा अपने उद्बोधन में भारतीय ज्ञान परम्परा में गणित की भूमिका को रेखांकित किया गया तथा सिद्ध किया गया, वैदिक गणित केवल सामान्य गणनाओं तक सीमित नहीं है बल्कि यह आधुनिक गणितीय अवधारणाओं से जुड़ता है।

द्वितीय सत्र की अध्यक्षता कर रहे जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय भारतीय भाषा केंद्र के प्रोफेसर सुधीर प्रताप सिंह द्वारा अपने उद्बोधन में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के द्वारा भारतीय भाषाओं के संवर्धन और संरक्षण पर प्रकाश डाला गया तथा राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तहत प्राथमिक शिक्षा को मातृभाषा में ही प्रदान करने की आवश्यकता पर जोर दिया गया।

चतुर्थ सत्र में श्रीदेव सुमन विश्व विद्यालय के प्रो. अमित कुमार जायसवाल, विभागाध्यक्ष बीएड विभाग द्वारा भाषा के महत्व और उपयोगिता पर प्रकाश डाला गया। उक्त सत्र में प्रो. अरविन्द कुमार अवस्थी द्वारा अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में भाषाओं के व्याकरण की दार्शनिक व्याख्या की गई।

20 दिसंबर आयोजिक संगोष्ठी के द्वितीय दिवस का शुभारंभ प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य भास्करानंद अंथवाल द्वारा गढ़वाली बोली-भाषा में मंगलाचरण से किया गया। गढ़वाली बोली-भाषा में अपने विचार व्यक्त करते हुए उन्होंने भारतीय ज्ञान परंपरा में काल गणना की उपयोगिता का उल्लेख किया। उक्त सत्र के मुख्य वक्ता के रूप में भाषाविद डॉ. साकेत बहुगुणा द्वारा मातृभाषा का महत्व बताते हुए औपनिवेशिक मानसिकता को छोड़ने की बात को बल दिया गया। उन्होंने गढ़वाली, कुमाऊंनी और जौनसारी बोली-भाषाओं की साहित्यिक समृद्धि को रेखांकित किया। संगोष्ठी सह संरक्षक प्रो. मोहन सिंह पंवार द्वारा लिंग्विस्टिक जियोग्राफी के आधार पर भारतीय भाषाओं की विविधता पर प्रकाश डाला तथा साथ ही संगोष्ठी के सफल आयोजन के लिए स्थानीय समन्वयक प्रो. गुड्डी बिष्ट की सराहना की गई। उक्त सत्र अध्यक्ष प्रो. विजय कुमार कौल द्वारा राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के परिप्रेक्ष्य में उत्तराखंड की 13 भाषाओं के परस्पर संबंध पर सारगर्भित प्रकाश डाला गया।

अन्य आयोजित सत्रों में विभिन्न विद्वानों, शिक्षकों एवं शोधार्थियों द्वारा आमंत्रित अतिथियों की उपस्थिति में शोध पत्र प्रस्तुत किए गए। उक्त प्रस्तुत शोध पत्र उत्तराखण्ड की भाषाओं, कृत्रिम बुद्धिमत्ता, भाषाओं की व्याकरणिक विशेषता, संस्कृत भाषा तथा भाषा विज्ञान से संबंधित रहे। संगोष्ठी में सहायक आचार्यों में क्रमशः डॉ. ओम प्रकाश, डॉ. वीरेंद्र बड़थ्वाल, डॉ दिनेश चंद्र पांडेय, डॉ बालकृष्ण बधानी तथा अन्य जनों में आशीष सुंदरियाल, डा. शोभा रावत, डॉ. लक्ष्मी नौटियाल, डॉ. सृजना राणा, डॉ. रंजू रौथान इत्यादि इत्यादि प्रतिभागियों द्वारा शोध पत्र प्रस्तुत किए गए।

आयोजित दो दिवसीय संगोष्ठी के इस अवसर पर डॉ. आकाशदीप, डॉ. सविता मैठाणी, डॉ. गौरीश नंदिनी, नवीन भट्ट, शोधार्थी मुरारी कुमार गुप्ता, आशीष सुंदरियाल, राकेश सिंह, प्रमोद उनियाल, कोमल, शिवानी, लवकेश , पंकज सिंह, विकास यादव, शालिनी, शालू , तृप्ति, नितिन, अरूणेश इत्यादि इत्यादि छात्र-छात्राएं बड़ी संख्या में उपस्थित रहे।

संगोष्ठी समापन सत्र में सभी प्रतिभागियों को प्रमाण-पत्र स-सम्मान प्रदान किए गए तथा मुख्य अतिथि प्रख्यात भाषाविद प्रो. रमेशचंद्र शर्मा द्वारा शोधार्थियों एवं शिक्षकों को भाषा विज्ञान के क्षेत्र में शोधकार्य करने हेतु प्रेरित किया गया तथा विश्वविद्यालय में एक स्वतंत्र भाषा विज्ञान विभाग की आवश्यकता पर बल दिया गया जिससे भाषा विज्ञान के क्षेत्र में गुणवत्तापूर्ण शोध कार्य हो सकें।

दो दिवसीय संगोष्ठी समापन राष्ट्रीय संगोष्ठी स्थानीय समन्वयक प्रोफेसर गुड्डी बिष्ट पंवार द्वारा कुलपति प्रो. श्रीप्रकाश सिंह का आभार एवं धन्यवाद व्यक्त कर किया गया।प्रोफेसर गुड्डी बिष्ट पंवार द्वारा कहा गया, कुलपति प्रो. श्रीप्रकाश सिंह की दूरदर्शी सोच एवं भाषाई प्रेम ने इस महत्त्वपूर्ण राष्ट्रीय संगोष्ठी को विश्वविद्यालय में आयोजित करवाने का अवसर प्रदान किया गया। समस्त आगंतुक अतिथियों, शिक्षकों, भाषाविदों एवं प्रतिभागियों का धन्यवाद ज्ञापित कर कार्यक्रम के समापन की घोषणा की गई। आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का संचालन हिंदी विभाग शोधार्थी शुभम थपलियाल द्वारा बखूबी किया गया।

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