संस्कृति और विकास के संगम से प्रदेश को नई पहचान दे रहे हैं सांसद अनिल बलूनी”
“जब विकास की राह पर संस्कृति साथ चलती है, तब पहचान केवल प्रदेश की नहीं, पीढ़ियों की बनती है।”
अमर चंद्र
देहरादून। गढ़वाल लोकसभा क्षेत्र के सांसद एवं भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय मीडिया प्रभारी श्री अनिल बलूनी अपनी सरलता, संवेदना और जनसेवा के भाव के कारण आज प्रदेश की जनता के दिलों में बसते जा रहे हैं। राजनीति के व्यस्त जीवन के बीच भी उन्होंने अपनी संस्कृति, परंपरा और विकास तीनों को साथ लेकर चलने की मिसाल पेश की है।
श्री बलूनी की सोच केवल अपने संसदीय क्षेत्र तक सीमित नहीं, बल्कि पूरे उत्तराखंड के समग्र विकास की ओर अग्रसर रहती है। अपने राज्यसभा कार्यकाल में उन्होंने प्रदेश की कनेक्टिविटी और जनसुविधाओं को बेहतर बनाने के लिए कई ऐतिहासिक कदम उठाए।
उन्होंने काठगोदाम से दिल्ली के बीच नैनी जनशताब्दी एक्सप्रेस का शुभारंभ कराकर कुमाऊं और दिल्ली के बीच एक नई रेल कड़ी जोड़ी। इसी तरह टनकपुर से दिल्ली रेल सेवा शुरू कराकर कुमाऊं मंडल के यात्रियों के लिए आवाजाही को आसान बनाया। चाहे देहरादून की कनेक्टिविटी हो या सीमांत जिलों तक रेलवे और सड़क संपर्क पहुँचाने की बात बलूनी जी लगातार इन परियोजनाओं के लिए केंद्र में प्रभावी भूमिका निभाते रहे हैं।
केंद्र सरकार में उनकी मजबूत दखल से प्रदेश के सभी 13 जिलों को लाभ मिला है। उन्होंने अपने राज्यसभा सांसद निधि से उत्तरकाशी, कोटद्वार और रामनगर में आईसीयू यूनिट्स की स्थापना कराई, जिससे दूरस्थ क्षेत्रों में आपातकालीन स्वास्थ्य सेवाएँ सुलभ हुईं।
इसके अलावा मसूरी की पंपिंग पेयजल योजना के लिए टोकन मनी स्वीकृत कराकर उन्होंने स्थानीय जनता की दीर्घकालिक समस्या का समाधान सुनिश्चित किया।
उनका यह समर्पण केवल विकास परियोजनाओं तक सीमित नहीं, बल्कि संस्कृति के पुनरुत्थान तक फैला है। श्री बलूनी ने अपने निवास स्थान से वर्षों पूर्व “इगास” पर्व को पुनर्जीवित करने की पहल की जो कभी उत्तराखंड का लोक पर्व हुआ करता था और धीरे-धीरे लुप्त हो रहा था। आज यही पर्व एक “जनपर्व” बन चुका है, जिसने उत्तराखंड के लोगों में अपनी जड़ों से जुड़ने का गर्व जगाया है।
जैसे बिहार में छठ पर्व सांस्कृतिक एकता और आस्था का प्रतीक है वैसे ही श्री बलूनी ने इगास को उत्तराखंड की पहचान के रूप में जन-जन तक पहुँचाया है। यह उनका वह प्रयास है जिसने हर उत्तराखंडी को अपनी परंपरा और संस्कृति पर गर्व करने का अवसर दिया।
सांसद अनिल बलूनी का मानना है कि “विकास तभी सार्थक है जब उसमें हमारी संस्कृति की जड़ें जीवित रहें।” यही सोच उन्हें अन्य नेताओं से अलग बनाती है। स्वास्थ्य, पर्यटन, कृषि और संस्कृति, हर क्षेत्र में उनकी योजनाएँ जनता की जरूरतों और भावनाओं से सीधे जुड़ी हुई हैं।
उनके प्रयासों से औली को विश्वस्तरीय स्कीइंग हब बनाने की दिशा में काम शुरू हुआ है, वहीं गढ़वाली सेब के निर्यात ने किसानों के जीवन में नई आशा जगाई है। यूएई तक उत्तराखंडी उत्पादों की पहुँच “स्थानीय से वैश्विक” (Local to Global) अभियान की एक प्रेरक मिसाल बन चुकी है।
कुछ आलोचक उनके कार्यों पर सवाल उठाते हैं, पर यह भी सत्य है कि अनिल बलूनी की राजनीति प्रदर्शन की नहीं, प्रतिबद्धता की है। वे सत्ता से नहीं, सेवा से पहचान बनाना चाहते हैं।
उनका सौम्य स्वभाव, जनता के प्रति संवेदनशीलता और हर विषय पर सजग दृष्टिकोण उन्हें आम जनमानस के और करीब लाता है। यही कारण है कि आज वे न केवल एक लोकप्रिय जनप्रतिनिधि हैं, बल्कि एक ऐसे विचारशील नेता भी हैं जो प्रदेश के भविष्य को नई दिशा दे रहे हैं।
“जब विकास की राह पर संस्कृति साथ चलती है, तब पहचान केवल प्रदेश की नहीं, पीढ़ियों की बनती है।”

