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बिहार की सियासत के नए धूमकेतु चिराग पासवान, दलित नेतृत्व के नए केंद्र में स्थापित

चिराग पासवान नई पीढ़ी की उम्मीदों और आकांक्षाओं की आवाज बनकर उभरे हैं

 

Amar sandesh नई दिल्ली।बिहार की राजनीति में चिराग पासवान एक नए धूमकेतु की तरह उभरे हैं। ‘बिहारी फर्स्ट’ की स्पष्ट और प्रभावशाली रणनीति, एनडीए में बढ़ती स्वीकार्यता तथा लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के दो दशकों में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन ने उन्हें राज्य ही नहीं, बल्कि राष्ट्रीय राजनीति में एक निर्णायक चेहरे के रूप में स्थापित कर दिया है।

चिराग पासवान का यह उभार उस दौर में सामने आया है, जब दलित राजनीति के पारंपरिक दिग्गज मायावती और जीतनराम मांझी जैसे नेता लोकप्रियता में गिरावट का सामना कर रहे हैं। ऐसे समय में चिराग ने अपनी नई सोच और संयमित नेतृत्व से दलित राजनीति को नया स्वर और ऊर्जा दी है।

एनडीए द्वारा लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) को 29 सीटें दिए जाने पर राजनीतिक हलकों में कई तरह की प्रतिक्रियाएँ थीं, लेकिन चिराग ने इन आशंकाओं को गलत साबित कर दिखाया।

उन्होंने 29 में से 19 सीटें जीतकर यह साबित कर दिया कि भाजपा नेतृत्व का उन पर भरोसा बिल्कुल सही था।

एक दौर में पारिवारिक संघर्ष और पार्टी पर नियंत्रण की लड़ाई में कमजोर दिखे चिराग ने पाँच वर्षों में न सिर्फ समीकरण बदले, बल्कि खुद को रामविलास पासवान की राजनीतिक विरासत का वास्तविक और सफल उत्तराधिकारी साबित किया कुछ मायनों में उससे भी आगे निकलते हुए।

एनडीए के शीर्ष प्रचारकों में शुमारयुवा नेतृत्व की नई पहचान

चुनाव अभियान के दौरान चिराग पासवान एनडीए के पाँच सबसे लोकप्रिय स्टार प्रचारकों में शामिल रहे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के साथ वह एनडीए के मुख्य चेहरों में रहे।

उनकी युवाओं में मजबूत पकड़, करिश्माई व्यक्तित्व और विकास के प्रति स्पष्ट दृष्टि ने उन्हें बिहार की महत्वाकांक्षी युवा आबादी का भरोसेमंद नेता बना दिया है।

इस चुनाव में लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के प्रदर्शन ने 20 वर्षों का रिकॉर्ड तोड़ा। 2005 के फरवरी चुनाव के बाद यह लोजपा का सबसे मजबूत प्रदर्शन है।

चिराग पासवान ने पार्टी को न केवल पुनर्जीवित किया, बल्कि बिहार में उसे नए निर्णायक मोर्चे पर खड़ा कर दिया है।

2020 में एनडीए से अलग होकर चुनाव लड़ने के बावजूद चिराग ने अपने करीब पाँच प्रतिशत अनुसूचित जाति के कोर वोट बैंक को मजबूती से बचाए रखा।

यह प्रमाण है कि बिहार की राजनीति में अब उनके बिना किसी गठबंधन के लिए बड़ी सफलता पाना आसान नहीं रहा।

चिराग पासवान नई पीढ़ी की उम्मीदों और आकांक्षाओं की आवाज बनकर उभरे हैं। विकास-केंद्रित सोच, राजनीतिक संतुलन और सामाजिक सरोकारों को लेकर उनकी स्पष्टता उन्हें बिहार के भविष्य के केंद्रीय नेतृत्व में शामिल करती है।

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