राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय फलक पर ख्याति प्राप्त सांस्कृतिक संस्था ‘पर्वतीय कला केंद्र’ दिल्ली का चुनाव सम्पन्न
अमरचंद
नई दिल्ली। राष्ट्रीय व वैश्विक फलक पर उत्तराखंड की ख्यातिप्राप्त सांस्कृतिक संस्था ‘पर्वतीय कला केंद्र, दिल्ली’ का चुनाव 22 दिसंबर 2024 को उत्तराखंड सदन, चाणक्य पुरी नई दिल्ली में चुनाव अधिकारी हिंदी अकादमी दिल्ली सरकार के पूर्व सचिव डा.हरि सुमन बिष्ट व उत्तराखंड की ख्याति प्राप्त प्रतिनिधि संस्था ‘पहाड़’ के दिल्ली प्रभारी चंदन डांगी की देख-रेख में सम्पन्न हुआ।
‘पर्वतीय कला केंद्र’ के अध्यक्ष पद पर सी एम पपनैं, उपाध्यक्ष पद पर क्रमश: चन्द्रा बिष्ट व बबीता पांडे महासचिव चंदन डांगी, सचिव कैलाश पांडे, सह-सचिव क्रमश: लक्ष्मी महतो, के एस बिष्ट व खिलानंद भट्ट, कोषाध्यक्ष दीपक जोशी तथा उप-कोषाध्यक्ष पद पर खुशहाल सिंह रावत चुने गए।
कार्यकारिणी सदस्यों में महेंद्र सिंह लटवाल, डॉ.हेमा उनियाल, डॉ.के सी पांडे, नीलम राना, भूपाल सिंह बिष्ट, गोपाल पांडे, भुवन रावत, अनुकम्पा बिष्ट, हरी सिंह रावत, मधु बेरिया साह व विद्या दत्त जोशी चुने गए।
‘पर्वतीय कला केन्द्र’ दिल्ली के वरिष्ठ सदस्य, संगीत नाटक अकादमी भारत सरकार तथा अमृत सम्मान भारत सरकार से नवाजे गए क्रमशः दिवान सिंह बजेली व भैरव तिवारी के साथ-साथ सर्वोच्च न्यायालय वरिष्ठ अधिवक्ता सतीश टम्टा, सेवानिवृत आई आर एस रतन सिंह रावत, समाजसेवी रमा उप्रेती, भारतीय उद्योग जगत से जुड़े टी सी उप्रेती, सुरेश चंद्र पांडे, पी सी नैनवाल, नरेंद्र सिंह लडवाल, वरिष्ठ साहित्यकार व हिंदी अकादमी दिल्ली सरकार सेवा निवृत सचिव हरि सुमन बिष्ट, उत्तराखंड फिल्म जगत से जुड़े संजय जोशी, उत्तराखंड राज्य सरकार पूर्व राज्य मंत्री पूरन चंद्र नैलवाल, वरिष्ठ पत्रकार व मुख्यमंत्री उत्तराखंड मीडिया कॉर्डिनेटर मदन मोहन सती, ओएनजीसी सेवा निवृत जीएम एचआर दुर्गा सिंह भंडारी को सर्वसम्मति से संस्था संरक्षक मनोनीत किया गया।
वर्ष 1968 दिल्ली प्रवास में स्थापित राष्ट्रीय व वैश्विक फलक पर ख़्यातिरत सांस्कृतिक संस्था ‘पर्वतीय कला केंद्र’ के संस्थापक अध्यक्ष राष्ट्रीय रंगमंच के जानेमाने संगीत निर्देशक व लोकगायक स्व.मोहन उप्रेती के साथ-साथ बहादुर राम टम्टा, एच एस राना, नईमा खान उप्रेती, भगवत उप्रेती, डॉ.नारायण दत्त पालीवाल, प्रोफेसर (डॉ.) नारायण कृष्ण पंत, बृजेंद्र लाल साह, बी एम साह, प्रेम मटियानी, विश्व मोहन बडोला, दयानंद अनंत ढोंडियाल, आनंद सिंह कुमाऊनी इत्यादि इत्यादि का उत्तराखंड की आंचलिक लोकगायन, लोक संगीत व नृत्य तथा लोकगाथाओं की रचना व मंचन तथा उक्त सांस्कृतिक संस्था के उत्थान में बहुत बड़ा योगदान रहा है।
पर्वतीय कला केंद्र के अध्यक्ष पद पर स्व. मोहन उप्रेती, स्व.नईमा खान उप्रेती, स्व.भगवत उप्रेती, स्व.प्रेम मटियानी, सी डी तिवारी तथा सी एम पपनै द्वारा पद निर्वाह किया गया। सम्पन्न हुए प्रतिष्ठित चुनाव में सी एम पपनैं केन्द्र के दूसरी बार वर्ष 2024- 2027 हेतु अध्यक्ष पद पर निर्वाचित हुए हैं।
राष्ट्रीय व वैश्विक फलक पर ख्याति प्राप्त सांस्कृतिक संस्था, ‘पर्वतीय कला केंद्र, दिल्ली’ भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय द्वारा वर्ष 1989 से निरंतर 28 वर्षो तक रंगमंडल का दर्जा प्राप्त देश की अव्वल दर्जे की सांस्कृतिक संस्थाओं में सुमार रही है। वर्तमान में पुनः रंगमंडल का दर्जा हासिल कर चुकी पर्वतीय कला केंद्र द्वारा वर्ष 2018 भारत में आयोजित ‘ओलंपिक थियेटर’ में मंचित किए गए गीत-नाट्य ‘राजुला-मालूशाही’ के मंचन ने वैश्विक फलक पर बडी ख्याति अर्जित की गई थी। वैश्विक फलक पर ‘पर्वतीय कला केंद्र दिल्ली’ द्वारा भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद भारत सरकार के सौजन्य से अनेकों बार विश्व के अनेकों देशों का भ्रमण कर अंतरराष्ट्रीय कार्यक्रमो में देश का प्रतिनिधित्व कर राष्ट्र का नाम रोशन किया गया है।
सन 1968 से 1980 तक इस संस्था द्वारा उत्तराखंड के लोकनृत्य, गीत व संगीत आधारित कार्यक्रमो को आधुनिक रंगमंच पर मंचित कर न सिर्फ मध्य हिमालय उत्तराखंड की सशक्त पारम्परिक लोकसंस्कृति व लोककला को पहचान दिलवाई गई है, हास की कगार पर खड़ी इस लोक विधा का संरक्षण व संवर्धन भी किया गया है। आधुनिक रंगमंच विशेषज्ञों का ध्यान उत्तराखंड की इस नायाब गीत-संगीत व नृत्यों की ओर भी आकर्षित किया गया है।
1980 मे ‘पर्वतीय कला केंद्र’ द्वारा, उत्तराखंड की प्रेमगाथा ‘राजुला मालूशाही’ का कुमांऊनी बोली, गीतनाट्य शैली मे मंचन कर नाट्य जगत के विशेषज्ञों का ध्यान आकर्षित किया था। 1982-83 मे ‘अजुवा बफौल’ उत्तराखंड की सशक्त वीरगाथा व सु-विख्यात गीतनाट्य शैली रामलीला के ‘धनुष यज्ञ’ व ‘सीता बनवास’ का प्रभावशाली मंचन कर अपार ख्याति अर्जित की गई थी। 1971 में सिक्कम तथा वर्ष 1983 में भारत सरकार द्वारा प्रायोजित पांच पश्चिमी एशियाई व यूरोपीय देशों का तीन माह का दौरा 18 कलाकारों के साथ कर भारत का प्रतिनिधित्व किया गया था। 1988 मे 24 कलाकारों के साथ उत्तरी कोरिया, चीन व थाईलैंड का 18 दिवसीय दौरा किया था। उक्त दौरे भारतीय सांस्कृतिक सम्बन्ध परिषद, भारत सरकार के सौजन्य से प्रायोजित किए गए थे जिनका नेतृत्व मोहन उप्रेती द्वारा किया गया था।
पर्वतीय कला केंद्र द्वारा, उत्तराखंड की कुमांऊनी व गढ़वाली लोक बोली में मंचित अन्य चर्चित लोक गाथाओ में महाभारत (गढ़वाल की पांडव जागर पर आधारित लोकगाथा), रसिक रमौल, जीतू बगड़वाल, हिल-जात्रा, भाना गंगनाथ, रामी, गोरिया, नंदादेवी, गोरीधना, हरूहित इत्यादि मुख्य रही हैं। लगभग मंचित लोकगाथाओं का आलेख, ब्रजेन्द्र लाल साह, संगीत निर्देशन मोहन उप्रेती व निर्देशन बी एम शाह, प्रेम मटियानी, सुभाष उदगाता, एम के रैना इत्यादि द्वारा किया गया था।
57 वर्षों की पर्वतीय कला केंद्र की सांस्कृतिक यात्रा में अन्य मंचित चर्चित लोकनाट्यो व गाथाओं व नाटकों में मुख्य रूप से इंदर सभा, अमीर खुसरो, मेघदूत, आजादी की 40वीं वर्षगांठ पर ‘वंदेमातरम’, कुली बेगार, कगार की आग, धरमदास, वीर चन्द्र सिंह गढ़वाली, पहाड़ नै की काथ, अष्टवक्र, आज रंग है, देवभूमि इत्यादि का प्रभावशाली व यादगार मंचन रहा है। उक्त गीत नाट्यो व नाटकों का आलेख दयानंद अनंत ‘ढोंडियाल’, हिमांशू जोशी, चंद्र मोहन पपनैं इत्यादि तथा नाट्य निर्देशन रमेश बथेजा, लोकेंद्र त्रिवेदी, सोनार चंद, नईमा खान उप्रेती, भगवत उप्रेती, राम जी बाली, अमित सक्सेना, डॉ पुष्पा बग्गा, डॉ गोविंन्द पांडे, सुधीर रिखाड़ी तथा सुमन वैद्य द्वारा किया गया।
‘पर्वतीय कला केन्द्र’ की अनेकों लोकगाथाओं व अन्य कार्यक्रमो का राष्ट्रीय प्रसारण दूरदर्शन व आकाशवाणी से भी प्रसारित होता रहा हैं। देश के अनेकों महानगरों, नगरों व कस्बों में भारत सरकार, राज्य सरकारों व स्थानीय संस्थाओं द्वारा आयोजित उत्सवों व समारोहों में इस संस्था के गीत-संगीत व लोकगाथाओं के कार्यक्रम मंचित होते रहे हैं। वर्तमान में पर्वतीय कला केंद्र देश की एक मात्र प्रमुख सांस्कृतिक संस्था है, जो गीत नाट्य मंचन के क्षेत्र में अव्वल स्थान रखती है।